Ahalebait ke baare me hairat angez maloomat : अहलेबैत के बारे में हैरत अंगेज़ मालूमात

आज हम इस पोस्ट में अहलेबैत के बारे कुछ हैरत अंगेज़ बातें जिनको जानकर बहुत अच्छा लगेगा पोस्ट को पूरा पढ़ें और इस पोस्ट में हम ये बातें जानेंगे

  1. हमारे नबी ने कब किससे निकाह किया
  2. हज़रत अली की बहिन उम्मे हानी से आपका निकाह नहीं हुआ
  3. हमारे नबी के चचा हज़रत अब्बास
  4. हज़रत इमाम ज़ैनुल आबीदीन कहा दफन हैं 
  5. अबु तालिब के बारे में किया अकीदा रखना चाहिए
  6. हज़रत आएशा पे इलज़ाम की हक़ीक़त
  7. ईमाम शाफई ने क्या फरमाया
  8. अहले बैते रसूल पर दुरुद भेजना

Hamare nabi ne kab kisse nikah Kiya : हमारे नबी ने कब किससे निकाह किया:-

हज़रत उम्मूल मोमिनीन खदीजतूल कुबरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा के विसाल के बाद सरवरे आलम सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत सौदा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा से निकाह फरमाया हिजरत के दूसरे साल तक आपके निकाह में रहीं । सन् 2 हिजरी में हज़रत आएशा सेद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा रुखसत होकर आपकी खिदमत में आईं। फिर हिजरत के तीसरे या चौथे साल हज़रत उम्मे सलमा ,हज़रत हफ्सा हज़रत ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमा खिदमते मुबारक में आईं । पांचवीं साल हिजरत में हज़रत ज़ैनब बिन्ते हब्श, छटे साल हिजरत में हज़रत जवेरिया , सातवीं साल हिजरत में सफिया और हज़रत मैमूना और हज़रत उम्मे हबीबा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हुन्ना से निकाह फरमाया और इस तरह हिजरत के सातवीं साल 9 बीवियां इखट्टा हुईं

Hazrat Ali ki bahin umme haani se aapka nikah nahin hua : हज़रत अली की बहिन उम्मे हानी से आपका निकाह नहीं हुआ :-

हज़रत उम्मे हानी रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा के बारे मश्हूर है कि उनका नाम फाखना था ,एक और रिवायत के मुताबिक़ फातिमा था । तीसरी रिवायत ये है कि हिन्द था। ये हज़रत अली रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु की सगी बहिन थीं।

इस्लाम लाने से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने उनसे निकाह का पैग़ाम अबू तालिब को भेजा और दूसरी तरफ हबीरा बिन उमर ने भी पैगाम भेजा अबू तालिब ने हबीरा से उनकी शादी करदी इस पर हुज़ूरे अकदस सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने न गवारी ज़ाहिर फरमाई तो अबू तालिब ने ये माज़रत की के हमने उनसे ये रिश्ता कर लिया है। यौमे फतह को हज़रत उम्मे हानी रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा ईमान लाईं, उनका शौहर ईमान न लाया और ज़िद पर अड़ा रहा और फिर नजरान भाग गया और वहीं कुफ्र पर खातिमा हुआ । उसके बाद हुज़ूरे अकदस सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने फिर उम्मे हानी को निकाह का पैग़ाम दिया तो उन्होंने अर्ज़ की या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम मैं मुसीबत ज़दा हूं मैं आपसे जाहिलियत के ज़माने से मुहब्बत करती हूं आप मुझे मेरी जान से भी ज़्यादा महबूब हैं मगर देख लीजिए ये एक बच्चा अभी कितना छोटा है और ये दूसरा दूध पीता है, मुझे अंदेशा है कि मैं आपका हक़ अदा न कर पाऊंगी । जब उनके दोनों बच्चे बड़े हो गए तो उम्मे हानी ने अपने आप को पेश किया तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम फ़रमाया अब नहीं इसलिए कि अल्लाह ताआला ने ये आयते करीमा नाज़िल फरमाई “ऐ नबी हमने आपके लिए हलाल फरमाईं आपकी वोह बीवियां जिनको आप महेर दे चुके हैं और तुम्हारी कनीज़ें जो अल्लाह ने तुम्हें गनीमत में दीं तुम्हारे चचा की बेटियां और फूफियों की बेटियां मामुओं की बेटियां और खालाओं की बेटियां जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की “(सूरऐ अहज़ाब) चुंकि हज़रत उम्मे हानी रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा ने हिजरत नहीं की थी इसलिए वो आपकी बीवियों में शामिल न हो सकीं।

Hamare Nabi ke chacha Hazrat Abbas : हमारे नबी के चचा हज़रत अब्बास:-

हज़रत अब्बास इब्ने अब्दुल मुत्तलिब रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम के चचा थे । जो आपसे 2 साल पहले पैदा हुए उनकी वालिदा का नाम “नस्ला” या “नतीला” था । ये बनी नमर की रहने वाली थीं। हज़रत अब्बास बचपन में एक बार गायब हो गए थे तो उनकी मां ने मन्नत मांगी थी कि अगर मेरा बच्चा मिल जाएगा तो मैं काबे पर गिलाफ चढ़ाऊंगी। जब हज़रत अब्बास मिल गए तो उन्होंने रेशमी पर्दा चढ़ाया । ये पहली अरब खातून हैं जिन्होंने काबे पे रेशमी गिलाफ चढ़ाया । हज़रत अब्बास जाहिलीयत और इस्लाम दोनों में इज़्ज़त वाले थे । हाजियों को पानी पिलाना और मस्जिद हरम में खिदमत उन्हीं के सुपुर्द थी।

Hazrat Imam Zainul Abideen : हज़रत इमाम ज़ैनुल आबीदीन कहा दफन हैं :-

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबीदीन रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु अकाबिरे सादात , अहले बैत और ताबईन में से हैं। इमाम ज़हरी ने फरमाया किसी कर्शी को उनसे अफ़ज़ल नहीं देखा। हज़रत अली रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु के दौरे खिलाफत में सन् 36 हिजरी को पैदा हुऐ और सन् 94 हिजरी में 57 साल की उम्र पाकर मदीना तय्यबा में वफात हुई । जन्नतुल बक़ी में अपने चचा सैय्यदना ईमाम हसन मुज्तबा और दादी साहिबा सय्यद फातिमा ज़हरा रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा के बराबर में दफन हैं । सल्तनते उस्मानिया ने अहलेबैत के तमाम मज़ारात पर एक आलीशान गुंबद बनवा दिया था। जो “अब्बास” के नाम से मशहूर था। इब्ने सऊद नज्दी ने गुंबद ढा दिया और तमाम मज़ारात को ज़मीन के बराबर कर दिया । करबला के वाकिया के वक्त हज़रत इमाम ज़ैनुल आबीदीन रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु 24 साल के थे। बीमारी की वजह से बच गए। मशहूर ये है कि ईरान के आखरी ताजदार “यज़दजर” की बेटी शहरबानो से हैं ,लेकिन वाज़ मुअर्रिखीन ने इसका सख्ती से इंकार किया है (अल्लाह बेहतर जानने वाला है)

Abu Talib ke baare me Kiya aqeeda rakhna chahiye : अबु तालिब के बारे में किया अकीदा रखना चाहिए:-

अबु तालिब पर लानत भेजना हरगिज़ जायज़ नहीं इसलिए कि उनके कुफ्र पर मरने की कोई दलील नहीं है । बल्कि शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैहि ने अपनी किताब “मदारिजु-न-नबूव्वत”में उनके ईमान पर मौत होने की रिवायत नक़ल की है। और रूहुल बयान में एक जगह उनका बाद मौत ज़िंदा होना और ईमान लाना साबित किया गया है । पहली बात तो ऐसा है नहीं और अगर न चाहते हुए भी ये मान लिया जाए कि उनकी मौत कुफ्र पर हुई तब भी हमें बुरा अकीदा नहीं रखना चाहिए क्यूंकि हमारे आका और मौला हुज़ूर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम की उन्होंने बहुत खिदमत की और हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम को भी उनसे बहुत मुहब्बत थी इसलिए उनको बुरा कहना हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम को तकलीफ पहुंचाने जैसा होगा । उनका ज़िक्र अच्छे अंदाज़ से ही करना चाहिए । या फिर खामोश रहना चाहिए।

Hazrat Aesha pe Ilzam ki Haqeeqat : हज़रत आएशा पे इलज़ाम की हक़ीक़त:-

हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम बनी मुस्तलक की जंग से मदीना मुनव्वरा वापिस तशरीफ ला रहे थे हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा आपके साथ थीं । आपकी सवारी का ऊंट अलग था । उसपे हउदज ( डोली की तरह) थी आप हाउदज ( डोली की तरह) में पर्दा छोड़ कर बैठ जातीं थीं ऊंट चलाने वाले हाउदज ( डोली की तरह) उठाकर ऊंट पर बांध देते थे। आप हल्की फुल्की थीं उम्र शरीफ़ भी कम थी। इत्तीफाक से एक मंज़िल पे आपको हाउदज ( डोली की तरह) से बाहर निकलकर वीराने की तरफ जाने की ज़रूरत पेशा आई रफए हाजत के लिए । जब आप फारिग होकर वापिस आईं तो काफिला जा चुका था। हाउदज ( डोली की तरह) पर परदे डले हुए थे ।इसलिए किसी का ध्यान न गया की आप अंदर मौजूद नहीं हैं अब जब आप आईं तो आपको ताज्जुब हुआ लेकिन आपने खयाल किया आगे चलकर मेरी तलाश होगी और मैं न मिलूंगी तो कोई यहां ढूंढने यहां ज़रूर आएगा । रात को चादर लपेटकर आप वहीं बैठ गईं और आपको नींद आ गई। एक सहाबी हज़रत सफवान थे । उनकी ड्यूटी ये थी कि काफिले से कुछ फासले पर पीछे पीछे चला करें ताकि अगर कोई चीज़ काफिले से गिर जाए या कोई भुला भटका रह जाए तो उसकी खबर काफिले को दें। वोह जब सुबह सवेरे वहां पहुंचे तो देखा कि कोई सो रहा है आप करीब आए तो पहचान लिया और बेइखतियार पुकार उठे इन्ना लिल्लाही वा इन्ना इलैही राजेऊन। आवाज़ से हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा की आंख खुल गई मुंह ढांप लिया हज़रत सफ़वान ने अपना ऊंट करीब लाकर उसपे आपको बिठाया , उम्मुल मोमिनीन परदे के साथ उसपे सवार हो गईं। हज़रत सफवान ने ऊंट की नकेल पकड़कर काफिले के साथ मिला दिया। बात कुछ न थी मगर मदीना मुनाफिकों का घर था । उनके सरदार अब्दुल्लाह बिन अबी को एक बहाना हाथ आगया और उसने सफवान सहाबी पे इलज़ाम लगा दिया लेकिन आप सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम जानते थे कि आएशा सिद्दीका भी पाक हैं और हज़रत सफवान भी लेकिन हज़रत आएशा सिद्दीका रज़ीयल्लाहु तआला अन्हा इल्ज़ामों से बहुत परेशान हुईं और आप अपने घर अबू बकर सिद्दीक रज़ीयल्लाहु तआला अन्हु के पास चली गईं और कहा की मेरा मामला अल्लाह के हाथ है वोह ही मुझे साबित करेगा चुनाँचे सूरए नूर में आपकी पाक दामनी की आयत नाज़िल हुई और आप फिर हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुईं।

imam shafai ne kiya farmaya : ईमाम शाफई ने किया फरमाया:-

हज़रत ईमाम शाफई रहमतुल्लाह अलैहि ने अहले बैते रसूल सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम की तारीफ में फरमाया है कि ऐ अहले बैते रसूल सल्लल्लाहु तुमसे मोहब्बत करना क़ुरान अज़ीम की वजह से फर्ज़ है तुम्हारी शान तो यहां तक है कि जिसने तुम पर दुरूद ना पढ़ा उसकी नमाज़ कुबूल न हुई।

Ahle baite rasool par durud bhejna : अहले बैते रसूल पर दुरुद भेजना:-

हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु ताआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह ताआला ने कुछ फरिश्तों को सोने के कलम और चांदी के कागज़ दे रखे हैं । ये सिर्फ उस दुरूद के लिखने पर मुकर्रर हैं जो मुझपर और मेरे अहलेबैत पर भेजा जाए ।

Leave a Comment